Monday, January 24, 2011

रेडियो की भाषा 

रेडियो एक  श्रव्य माध्यम है | रेडियो पर सब कुछ बोलकर प्रसारित किया जाता है| परन्तु रेडियो पर जो कुछ भी प्रसारित होता है ,वो सब लिखा जाता है| प्रसारक के हाथ में  एक आलेख होता है  |एक छोटी सी उदघोषणा " यह आकाशवाणी है " भी लिखी होती है |चाहे कार्यक्रम विवरण हो , चाहे वार्ता ,कविता , कहानी , पत्रिका ,कार्यक्रम , फरमाइशी फ़िल्मी गीतों का कार्यक्रम  या कोई अन्य कार्यक्रम , सब कुछ लिखा हुआ होता है | हर कार्यक्रम के लिए आलेख कि जरूरत होती है|
                      रेडियो कि भाषा का अर्थ है श्रव्य माध्यम कि भाषा यानि ऐसी भाषा जो रेडियो कि दृश्यहीनता कि छतिपूर्ति कर सके |  रेडियो कि भाषा में श्रोता के मस्तिष्क में " दृश्य प्रभाव " उत्पन्न करने कि छमता होनी चाहिए |ऐसी भाषा जो श्रोता के कल्पना संसार को  जागृत कर सके |
       इसे एक उदाहरण से अच्छी तरह समझा जा सकता है | जब हम यह लिखते हैं कि भाखड़ा बंद कि ऊंचाई 740 फीट है तो रेडियो पर  740 फीट बोलने से उसकी ऊंचाई का कोई बोध नहीं होता  और 740 फीट मामूली से आंकड़ा बनकर हवा में उड़ जाता है |और 740 या  340 या  940 में कोई फर्क नहीं रह जाता |लेकिन जब हम यह बोलते है कि  भाकड़ा   बांध कि ऊंचाई 'एक के उपर एक रखे तीन क़ुतुब मीनारों 'जितनी है  या कि भाकड़ा बांध कि ऊंचाई इतनी है जितनी 125  लोगों के एक के उपर एक खड़े होने से बनेगी तो हमे हमें भाकड़ा बांध कि ऊंचाई का एक दृश्य प्रभाव नज़र आता है |
 

No comments:

Post a Comment